विकलांगो के सेवा के नाम पर बनारस में हो रहा है व्यापार

दृष्टिबाधित छात्रों ने अन्ध विद्यालय बंद किये जाने के विरोध में विकलांग अधिकार छात्र समिति के बैनर तले BHU स्थित मधुबन पार्क में प्रेस वार्ता की। 

प्रेस को संबोधित करते हुए वक्ताओं ने कहा कि अन्ध विद्यालय बचाने की लड़ाई देश का भविष्य बचाने के लिए है। 21वीं सदी में विश्व जहां विकलांगजनों को अपना जीवन स्वाभिमान और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जीने के लिए प्रेरित कर रहा है वहीं हमारे देश मे सरकार और सामाजिक संस्थाएं विकलांगो के मूल अधिकार दबा कर हमारे भविष्य के साथ मजाक कर रही है। 


श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार अन्ध विद्यालय जो वाराणसी में दुर्गाकुंड के ठीक सामने स्थित है और हनुमान प्रसाद पोद्दार सेवा समिति ट्रस्ट इसको संचालित करती है। जिसके मलिक बनारस के प्रसिद्ध पूंजीपति किशन जालान हैं। यह विद्यालय 1972 में बन कर के तैयार हुआ और 1984/92 में क्रमशः इसे दसवीं और बारहवीं के सरकारी मान्यता भी प्राप्त हुई। यह पूर्वाचल का सबसे बड़ा अन्ध विद्यालय है, यहां 250 विद्यार्थियों के पठन पाठन की आवासीय व्यवस्था है।केवल उत्तरप्रदेश ही नही बल्कि बिहार, झारखंड, मध्यप्रदेश, असम आदि राज्यों से भी दृष्टिहीन छात्र यहां पढ़ने आतें हैं। 

जलान ग्रुप के नेतृत्व में फरवरी 2019 में फैसला लिया कि श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार अन्ध विद्यालय ट्रस्ट को बंद किया जाए। उन्होंने 16 मार्च 2019 को  फैसला किया कि  नवीं से बारहवीं कक्षा तक बंद कर देना चाहिए और इसकी वजह उन्होंने छात्रों की अनुशासनहीनता बताई। आपको जानकर आश्चर्य होगा, की विकलांगों को दिव्यांग कहे जाने वाले इस महान भारत मे एक भी केंद्र शासित अन्ध विद्यालय नही है। उत्तरप्रदेश के कुल 20 लाख नेत्रहीन छात्र-छात्राओं के लिए मात्र चार विद्यालय है।


जून 2020 तक इस फैसले पर विद्यालय प्रशासन ने कोई कार्यवाही नहीं हुई लेकिन 17 जून 2020 को कृष्ण कुमार के नेतृत्व वाले समिति ने स्कूल को बंद करने का आदेश जारी कर दिया। आदेश पारित होने के एक सप्ताह बाद छात्रों को जबरन वाराणसी से 400 किमी दूर दूसरे विद्यालय में भेज दिया। यह सब कोरोना महामारी व लॉक डाउन के समय किया गया ताकि छात्रों को विरोध करने का कोई मौका नहीं मिले। पूर्व में भी जलान समूह पर गौ सेवा के नाम पर अवैध तस्करी व जन भावना के खिलाफ काम करने का आरोप लगा है। कुछ मामलों में FIR भी दर्ज किया गया है। 

इस परिस्तिथि में जब इस तरह के विशेष विद्यालयों का सर्वथा अभाव है, प्रधानमंत्री के शहर में एक ऐसे अन्ध विद्यालय का बंद किया जाना जिसे सरकारी अनुदान भी प्राप्त होता है, अत्यंत निंदनीय है। 

कोरोना के पहले चरण में छात्रों को आकस्मिक एक पत्र प्राप्त होता है जिनमे उनके स्कूल को नवीं से बारहवीं तक हमेशा के लिए बंद किये जाने की सूचना मिलती हैI स्कूलों के भारी अभाव के बावजूद भी इस विद्यालय में नए छात्रों का प्रवेश भी नही लिया जा रहा है।

अन्ध विद्यालय बंद होने के कारण पांच राज्यों यूपी, बिहार,मध्यप्रदेश, झारखण्ड और छत्तीसगढ़ के छात्र प्रभावित होंगे।  सरकार हम विकलांग छात्रों को दिव्यांग कहकर दया न दिखाए बल्कि हम विकलांग, दृष्टिबाधित छात्रों को उनका हक दिया जाए। 

अन्ध विद्यालय को सरकार द्वारा अनुदान भी प्राप्त होता है। पहले 75% प्रतिशत अनुदान प्राप्त होता था लेकिन सरकार द्वारा विकलांगों को दिव्यांग कहे जाने के बाद 2014 से यह अनुदान कट कर 50% हो गया और 2019-20 में सरकार से अनुदान भी बंद हो गया। जनता की आस्था का इस्तेमाल दृष्टिहीनता पर किये जाने के कारण दान दाताओं का भी तांता लगा रहता है। मगर छात्रों के जीवन पर इन सुविधाओं का कोई असर नहीं पड़ता। इन पैसों और सुविधाओं का इस्तेमाल इस ट्रस्ट अपने व्यवसायिक कामों में करती है। यहां तक कि दान दाताओं को आकर्षित करने के लिए परीक्षा के दिनों में भी विद्यालय प्रांगण में ही कथाओं और बड़े बड़े कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है जिनका कोई भी सार्थक प्रयास हमदृष्टिहीनों पर नहीं पड़ता। 

विद्यालय प्रशासन व ट्रस्ट को न तो विकलांगता के बारे में कोई वैज्ञानिक समझ है और न ही संवेदनशीलता जिसकी वजह से हम दृष्टिहीन छात्रों का निरंतर शारिरिक और मानसिक शोषण होता है। 

महोदय पूरे उत्तर प्रदेश में दृष्टिहीन छात्रों के लिए केवल पांच विद्यालय की व्यवस्था है जिनमें से केवल यही एकमात्र विद्यालय है जिसमें छात्रों के रहने की व्यवस्था सबसे अधिक है। इस विद्यालय के बंद हो जाने से दृष्टिहीन समाज का बहुत बड़ा नुकसान होगा।

विकलांगो के सेवा के नाम पर बनारस शहर में व्यापार हो रहा है। यह प्रधानमंत्री का शहर है जहां मोदी जी ने हमारा नया नामकरण किया था। हम विकलांगजनो का नामकरण सरकारे पूर्व ने भी करती रही हैं, मगर इस बार प्रधानमंत्री ने हमें दिव्यांग कहा। हमे लगा कि इस बार हम विकलांगजनों के जीवन मे भी क्रांतिकारी सुधार होंगे मगर ये शब्द "दिव्यांग" केवल विकलांगता का एक दैवीय आवरण मात्र ही सिद्ध हो सका। विकलांग छात्रों के साथ तस्वीरों में नजर आकर प्रधानसेवक ने जनता के समक्ष तो अपनी सेवकाई सिद्ध कर दी किंतु विकलांगजनों को अबतक सेवाएं मिल नही पाई हैं। दशा यह है कि प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में एक पूंजीपति अपनी ताकत का इस्तेमाल कर के पूर्वाचंल का सबसे बड़ा अन्ध विद्यालय को बिना किसी पूर्व सूचना के बंद कर दिया जा रहा है और उसके खिलाफ कोई भी शिकायत , अफसर से लेकर स्वयं प्रधानमंत्री तक कोई नही सुन रहा है।

वक्ता शशिभूषण ने कहा कि जहां दृष्टिबाधित छात्र-छात्राओं के लिए तमाम विद्यालय खोने जाने चाहिए वहां मोदी जी के संसदीय क्षेत्र में कोई अन्ध विद्यालय बंद किया जाना बहुत दुःखद और शर्मनाक है। 

सभा में निम्न मांग की गई।

1-इस अन्ध विद्यालय को सरकार पूर्णतया अपने अधिकार क्षेत्र में ले और हमें हमारा अधिकार भीख या सेवा के बजाय अधिकार बोध के साथ प्रदान किया जाए। 

2-विद्यालय से निकाले गए छात्रों को वापस दाखिल किया जाए और उनकी कक्षाओं और परीक्षाओं का उचित प्रबंध किया जाए। 

3-तत्काल प्रभाव से विद्यालय को पुनः संचालित किया जाए।

विकलांगो के सेवा के नाम पर बनारस शहर में व्यापार हो रहा है। यह प्रधानमंत्री का शहर है जहां मोदी जी ने हमारा नया नामकरण किया था। हम विकलांगजनो का नामकरण सरकारे पूर्व ने भी करती रही हैं, मगर इस बार प्रधानमंत्री ने हमें दिव्यांग कहा। हमे लगा कि इस बार हम विकलांगजनों के जीवन मे भी क्रांतिकारी सुधार होंगे मगर ये शब्द "दिव्यांग" केवल विकलांगता का एक दैवीय आवरण मात्र ही सिद्ध हो सका। विकलांग छात्रों के साथ तस्वीरों में नजर आकर प्रधानसेवक ने जनता के समक्ष तो अपनी सेवकाई सिद्ध कर दी किंतु विकलांगजनों को अबतक सेवाएं मिल नही पाई हैं। दशा यह है कि प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में एक पूंजीपति अपनी ताकत का इस्तेमाल कर के पूर्वाचंल का सबसे बड़ा अन्ध विद्यालय को बिना किसी पूर्व सूचना के बंद कर दिया जा रहा है और उसके खिलाफ कोई भी शिकायत , अफसर से लेकर स्वयं प्रधानमंत्री तक कोई नही सुन रहा है।

प्रेस वार्ता में मुख्य रूप से शशि भूषण, मनदीप शर्मा, दीपक, राकेश सिंह यादव ,भोले नाथ, राहुल सिन्हा आदि लोग मौजूद थे। 


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